आओ, ज़रा टाइम मशीन की सीट बेल्ट बांध लो। हम 1947 में वापस जा रहे हैं। लेकिन इस बार, चीजें वैसी नहीं हैं जैसी हमें इतिहास की किताबों में पढ़ाई गई थीं। इस बार, भारत और पाकिस्तान के बीच ऐसा समझौता हुआ है कि विभाजन शांतिपूर्ण हो गया है। यानी, न दंगे, न खून-खराबा, और न ही लाखों लोगों को अपने घर छोड़कर भागना पड़ा।
सोचकर ही कितना सुकून मिलता है, है ना? लेकिन रुको, आइए इसे थोड़ा और गहराई से सोचते हैं।
कोई दंगे नहीं, कोई पलायन नहीं
पहला बड़ा फर्क तो यही होता कि लाखों लोग मारे नहीं जाते। जिन परिवारों को बंटवारे के कारण अपनी जड़ें उखाड़कर दूसरे देश में बसना पड़ा, उनकी कहानियाँ ही कुछ और होतीं। न कोई ट्रेन लाशों से भरी होती, न कोई रातों-रात सीमा पार भागता।
वो सब लोग जो अपने घर छोड़ने पर मजबूर हुए, आज भी अपने पुरखों की ज़मीन पर होते। आप और मैं शायद किसी दोस्त की नानी से उनकी लाहौर की कोठी की कहानियाँ सुन रहे होते, जो अब तक उन्हीं की होती।
धर्म के नाम पर नफरत की दीवारें नहीं
अगर हिंसा न होती, तो धर्म के आधार पर इतना कड़वा माहौल नहीं बनता। आज के भारत और पाकिस्तान के रिश्ते शायद दोस्ताना होते। सरहद के उस पार जाना कोई अजूबा नहीं होता। अमृतसर और लाहौर के बीच फ्लाइट पकड़ना वैसा ही आम होता, जैसे दिल्ली से मुंबई।
और सोचो, कितनी शादियाँ होतीं दोनों देशों के बीच! खाने-पीने से लेकर संगीत तक, हमारी संस्कृतियाँ कितनी खूबसूरती से मिली-जुली होतीं।
अर्थव्यवस्था पर असर
अब ज़रा आर्थिक पहलू पर भी नज़र डालते हैं। विभाजन की वजह से दोनों देशों ने बड़ी संपत्ति और संसाधन खो दिए। अगर ये नुकसान न हुआ होता, तो भारत और पाकिस्तान दोनों आज कहीं ज़्यादा संपन्न होते।
कल्पना करो, अगर दोनों देश अपने-अपने हिस्से का पैसा और संसाधन बेहतर विकास में लगाते, तो क्या कुछ हो सकता था। शायद आज दुनिया की दो सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाएँ भारत और पाकिस्तान होतीं।
क्रिकेट और बॉलीवुड का मेल
चलो, थोड़ा हल्कापन लाते हैं। अगर विभाजन के समय हिंसा नहीं होती, तो शायद पाकिस्तान का क्रिकेट और भारत का बॉलीवुड एक साथ होते। सोचो, विराट कोहली और बाबर आज़म एक ही टीम में होते।
और बॉलीवुड? यार, पाकिस्तानी म्यूज़िक और भारतीय फिल्में… क्या ज़बरदस्त कॉम्बो होता! ए.आर. रहमान के म्यूजिक पर राहत फतेह अली खान की आवाज़। इसे कहते हैं ड्रीम टीम!
क्या तब भी दुश्मनी होती?
यह सवाल भी जरूरी है। अगर हिंसा न होती, तो क्या दोनों देशों के बीच दुश्मनी भी न होती? शायद हाँ, शायद नहीं। ये तो वक्त ही बताता।
क्योंकि सच कहें, तो विवाद का बीज तो ज़मीन और धर्म की राजनीति में पहले ही बो दिया गया था। हो सकता है, बिना हिंसा के भी तनाव रहता। लेकिन इतना ज़रूर है कि लोगों के दिलों में कड़वाहट कम होती।
“अगर” पर कब तक अटके रहें?
लेकिन सच यही है कि ऐसा नहीं हुआ। विभाजन हुआ, और साथ में हुई हिंसा। लाखों लोग मारे गए, करोड़ों बेघर हुए, और आज तक हम उस दर्द की कहानियाँ सुनते हैं।
पर यह “क्या होता अगर” सोचने का भी अपना मज़ा है। यह हमें ये याद दिलाता है कि शांति का रास्ता हमेशा बेहतर होता है।
आप क्या सोचते हैं?
तो, अब आपकी बारी। अगर विभाजन के समय ऐसा समझौता हो जाता जिससे हिंसा टल जाती, तो क्या होता? क्या हम आज के भारत और पाकिस्तान को वैसे ही देखते?
सोचिए, और अगर इसपर आपके कुछ दिलचस्प विचार हैं, तो जरूर बताइए। कौन जाने, शायद आपकी कोई सोच हमें एक और “क्या होता अगर” लेख लिखने का आइडिया दे जाए!
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