दीपावली की रात थी। मुंशी हरिराम की हवेली में लड्डू और पटाखे तैयार हो रहे थे। अचानक खबर आई कि अंग्रेज अफसर मिस्टर विल्सन आने वाले हैं। विल्सन साहब नई-नई यहाँ पोस्ट हुए थे और भारतीय रीति-रिवाजों को जानने के बड़े इच्छुक थे। वो अक्सर मेले-त्योहारों में आते-जाते रहते थे और शायद इसी पर एक किताब लिखने का भी इरादा था। खबर मिलते ही हवेली में हड़कंप मच गया। सारे लोग गेरुआ कुर्ते, धोती और माथे पर चन्दन लगाए ऐसे जुटे थे मानो खुद लक्ष्मी-पूजन कर रहे हों। किसी को क्या पता था कि साहब इसी वक्त धमक पड़ेंगे। कोई पीछे की कोठरी में छुपा तो कोई छत पर चढ़ गया। मगर बेचारे मुंशी हरिराम जहाँ बैठे थे, वहीं रह गए। आधे घंटे में तो घुटनों पर हाथ टिकाकर खड़े होते थे, इस भगदड़ में भागते कैसे। उन्होंने सोचा कि अब तो यहीं बैठकर साहब का स्वागत करना होगा, चाहे जैसे भी हो।
साहब ने दहलीज पर कदम रखते ही हँसते हुए कहा, “हेलो, मुंशी जी! आज तो आपका दिवाली है?”
मुंशी हरिराम ने हाथ जोड़ते हुए कहा, “हाँ, हुज़ूर, आज दीपावली है।”
विल्सन: “और ये जो मिठाई का ढेर लगा है, वो सब खाने का है?”
मुंशी जी मुस्कुराए, “जी हां, हुजूर! आज के दिन सबके साथ मिठाई बाँटने का रिवाज़ है।”
साहब ने एक लड्डू उठा लिया। मुंशी जी की आँखों में चमक आ गई। उनकी आँखों के सामने जैसे स्वर्ग के द्वार खुल गए हों और वे पुष्पक विमान में बैठे जा रहे हों। उन्होंने सोचा, “ये तो भाग्य की बात है! किसे यह सौभाग्य प्राप्त होता है कि साहब अपने हाथों से भारतीय मिठाई खाए। वाह रे दिवाली!”
साहब ने एक लड्डू खाया और चहकते हुए बोले, “वाह मुंशी जी! बहुत बढ़िया! अब बताइए, ये बड़े थाल में क्या रखा है?”
मुंशी हरिराम ने विनम्रता से जवाब दिया, “हुजूर, यह ‘घी के दिए’ हैं। इसे जलाने से घर में सुख और समृद्धि आती है। दीपावली पर ये दिए जलाने का विशेष महत्व है।”
विल्सन साहब ने एक दिया उठा लिया और बोले, “हम भी जलाएगा। क्या होगा इससे?”
मुंशी जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “हुज़ूर, इससे जीवन में प्रकाश आता है। कहते हैं, दीयों की रौशनी से सारे अंधकार दूर हो जाते हैं।”
विल्सन साहब ने एक दिया जला लिया और बोले, “अच्छा मुंशी जी, कल आपको हमारे साथ क्रिसमस मनाना होगा।”
मुंशी जी थोड़े असमंजस में पड़ गए। उन्होंने धीमे स्वर में कहा, “हुज़ूर, हम तो ऐसे त्योहार नहीं मनाते। हमारे यहाँ तो बस दीपावली, होली मनाने का चलन है।”
विल्सन: “अरे मुंशी जी! त्योहार तो त्योहार है। चाहे दीपावली हो या क्रिसमस, सबका उद्देश्य खुशी और मेल-जोल ही तो है।”
मुंशी जी को साहब का तर्क कुछ-कुछ समझ आया। धीरे-धीरे उन्हें भी यह एहसास हुआ कि त्यौहार मनाने का असली मकसद है एक-दूसरे के साथ खुशी बाँटना।
साहब ने एक और लड्डू उठाया और बोले, “तो मुंशी जी, इस दीपावली पर हमने आपकी परंपरा मानी, अगली बार आप हमारे साथ क्रिसमस के केक काटेंगे।”
मुंशी जी हँसते हुए बोले, “अवश्य, हुजूर। त्योहार तो दिलों को जोड़ने के लिए ही होते हैं। चाहे वह दीपावली हो या क्रिसमस।”
फिर दोनों ने एक-दूसरे को दीपावली की शुभकामनाएं दीं और गले मिलकर यह त्योहार मनाया।
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