ज़रा सोचिए, दिवाली की रात। पूरा आसमान रंगीन रोशनी से भर जाता है, हर तरफ दीये की लौ चमकती है, लेकिन वो कानों को चुभने वाला धमाका नहीं, बल्कि कानों में घुल जाने वाला मीठा संगीत सुनाई देता है। हाँ, ठीक सुना आपने – पटाखे शोर की जगह संगीत बजाते तो क्या होता?
ये सवाल सुनकर पहले तो थोड़ा अजीब लगेगा, लेकिन सोचिए तो सही… ये कितना अद्भुत होता!
संगीत की धुनों में चमकता आसमान
अगर पटाखे शोर की जगह संगीत बजाते, तो दीपावली की रात पूरी तरह बदल जाती। जैसे ही हम पटाखा जलाते, वो धमाके की बजाय किसी पुरानी याद दिलाने वाली धुन में बदल जाता – जैसे बांसुरी की मीठी तान, या फिर सितार की झनकार। हर एक पटाखा अपने-अपने संगीत से लोगों के दिल को छु जाता।
आपके पास गानों की लिस्ट तैयार होती – “चकरी से वो राजस्थानी लोक गीत बजेगा,” “अनार से पुराने फिल्मी गाने।” क्या मज़ा आता! हर पटाखा एक नया सुर, एक नई धुन सुनाता, और पूरा मोहल्ला एक मिनी-म्यूज़िक कॉन्सर्ट में बदल जाता।
बम नहीं, अब बेजोड़ बैकग्राउंड म्यूज़िक
अब सोचिए ज़रा, जो लोग हर बार पटाखों की आवाज़ से चिढ़ते हैं – बुज़ुर्ग, बच्चे, या पालतू जानवर, सब चैन की नींद सो सकते थे। शोर की जगह सुकून देने वाले संगीत से ये रातें भीड़-भाड़ में फंसे हुए किसी ट्रैफिक सिग्नल की तरह परेशान करने वाली नहीं होतीं। और अगर संगीत का चयन अच्छा होता, तो यकीन मानिए, हर घर से वाह-वाह की आवाजें सुनाई देतीं, न की “क्या ये पटाखे कभी बंद नहीं होंगे?” जैसे ताने।
अपने-अपने गाने चुनो
कल्पना कीजिए कि पटाखों की दुकान पर अब हम रंग और साइज ही नहीं, बल्कि गानों की भी मांग करने लगते। “भैया, वो वाला पटाखा देना जिसमें वो ‘ये रेशमी जुल्फें’ वाला गाना बजे।” कोई बोलता, “एक क्लासिकल धुन वाला पटाखा भी दे देना।” और कुछ लोग पॉप म्यूज़िक चाहने वाले कहते, “भैया, ए आर रहमान वाला कोई धुन हो तो देना।” अब हर एक पटाखा लोगों के दिल के करीब होता, एक संगीत के एहसास में बदल जाता।
पटाखों का जश्न, लेकिन बिना प्रदूषण के
धमाकों और धुएं से भरे पटाखे जहां प्रदूषण और सेहत के लिए खतरा होते हैं, संगीत वाले पटाखे हवा में सिर्फ आवाज़ नहीं, बल्कि मीठी धुन छोड़ते। हवा भी साफ, आसमान भी साफ। सोचिए, बच्चे और बुजुर्ग खुलकर इस संगीत से भरपूर त्योहार का आनंद ले सकते थे, बिना मास्क या कानों में रुई लगाने की ज़रूरत के।
शोर और तनाव से छुटकारा
तेज आतिशबाजी के दौरान शोर-शराबे का असर सिर्फ हमारे कानों पर ही नहीं, बल्कि हमारे दिमाग पर भी पड़ता है। मनोविज्ञान कहता है कि तेज़ शोर से मानसिक तनाव और बेचैनी बढ़ सकती है। ऐसे में, अगर पटाखे संगीत बजाते, तो ना सिर्फ हमारे कानों को आराम मिलता, बल्कि त्योहार के मज़े दोगुने हो जाते।
और बात सिर्फ कानों की ही नहीं, आसपास के पालतू जानवर भी इस बदलाव का स्वागत करते। कल्पना कीजिए, आपका प्यारा डॉगी बिना डर के आपके साथ पूरे मन से दिवाली का लुत्फ उठा सकता था। ये सच में एक अलग ही अनुभव होता, जिसमें सब खुश, सब सुकून में।
क्या संगीत वाले पटाखे सच में संभव हैं?
अब ये सवाल आपके मन में भी जरूर आया होगा – “क्या ये सच में हो सकता है?” तकनीकी रूप से देखें तो, कुछ हद तक ये संभव है। कुछ कंपनियाँ छोटे स्पीकर और लाइट्स के साथ मिनी-म्यूज़िकल शो बनाने का काम कर रही हैं। अगर पटाखों को इस तरह से डिज़ाइन किया जाए कि वे फायरवर्क के साथ ही एक मीठी धुन भी छोड़ें, तो ये दिवाली का जश्न सुकून और शांति के साथ मुमकिन हो सकता है।
हो सकता है आने वाले समय में ये असंभव नहीं रहेगा। जब हम सेल्फ ड्राइविंग कारों और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की बात कर सकते हैं, तो संगीत वाले पटाखों का सपना भी सच हो सकता है।
और हाँ, संगीत बजाने वाले पटाखे परफॉर्मेंस भी हो सकते हैं
और सोचिए, म्यूज़िकल पटाखों के साथ कुछ लोग परफॉर्मेंस की भी योजना बनाते – जैसे डांस या म्यूजिक की थिरकती हुई लाइट्स के साथ। हर मोहल्ले में एक छोटे से शो का आयोजन होता। हर उम्र के लोग खुलकर इस आनंद का हिस्सा बनते, बिना किसी परेशानी के।
तो, क्या कहें, शोर वाले पटाखों को अलविदा कहें?
कभी-कभी ये सोचना ही अच्छा लगता है कि दुनिया में थोड़ी शांति और सुकून भी होता तो कैसा लगता। त्योहारों में भी एक नई रौनक होती, जो सभी के दिलों में प्यार और खुशी भरने का काम करती, बिना किसी तनाव के। तो अगली बार जब पटाखे जलाने का ख्याल आए, सोचिएगा कि क्या हो अगर इनसे धमाके की जगह संगीत सुनाई दे।
आप क्या सोचते हैं? अगर पटाखों में संगीत होता तो क्या ये त्यौहार और भी खास हो जाता? अपनी राय शेयर करें!
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