सोचिए कि हर रात सोने से पहले आपके पास एक मेन्यू होता, जिसमें आपके पसंद के सपने होते। जी हां, एकदम वैसा ही मेन्यू जैसे रेस्टोरेंट में होता है, पर ये मेन्यू नींद और ख़्वाबों का होता। जैसे, “आज कोई एडवेंचर वाला सपना चाहिए?” या फिर “एक रोमांटिक सा सपना चलेगा?” अब, चाहे आपके दिन कितने भी बोरिंग क्यों न हों, आपकी रातें एकदम फिल्मी और फन हो सकती हैं।
पर सवाल ये है कि अगर वाकई हमें अपने सपने खुद चुनने की पावर मिल जाए, तो क्या हमारी ज़िंदगी में कुछ बड़ा बदलाव आएगा? चलिए, थोड़ा गहराई में सोचते हैं।
सपनों का मेन्यू – क्या आज ‘एडवेंचर’ चुनें या ‘रिलैक्सेशन’?
सपने देखने का मकसद ही यही है कि वो हमें कहीं अलग दुनिया में ले जाते हैं, जो हमारी रियलिटी से एकदम अलग होती है। लेकिन अगर हम हर रात अपनी पसंद के सपने देखने लगें, तो शायद वो “सरप्राइज” वाला फैक्टर गायब हो जाए। सोचिए, हर दिन आपको पता होता कि रात में आप माउंट एवरेस्ट चढ़ रहे होंगे या किसी समुद्र की गहराइयों में गोते लगा रहे होंगे। रोमांच तो रहेगा, पर वो अचानक आने वाली ख़ुशी और डर… वो शायद गायब हो जाए।
वैसे, हो सकता है कि ये एक अच्छा ऑप्शन भी हो। थकान से भरे दिन के बाद अगर रात में रिलैक्सेशन के लिए “बीच वेकेशन” सपना चुना जा सके, तो मज़ा आ जाए, है ना?
पर्सनल ग्रोथ पर असर – क्या हर सपने से कुछ सीख सकते हैं?
अब सोचिए कि आप अपने सपनों को अपनी ज़रूरतों के हिसाब ( पसंद के सपने ) से चुन सकते हैं। क्या इससे आपकी पर्सनल ग्रोथ में तेजी आएगी? मुमकिन है। कई बार सपनों में हमें खुद की कुछ छुपी हुई बातें दिखती हैं। जो हमें खुद को समझने में मदद करती हैं। अगर हम अपने सपने चुन सकें, तो हम खुद को बेहतर तरीके से एक्सप्लोर कर सकते हैं।
मान लीजिए आपको किसी प्रेजेंटेशन का डर है, तो क्यों न अपने सपने में बार-बार वो सिचुएशन चुनें जहां आप कॉन्फिडेंट होकर बोल रहे हों? हो सकता है बार-बार उस सपने को देखने से असल जिंदगी में आपका डर कम हो जाए।
पर ध्यान रहे, हर बार अपने मन मुताबिक सपना देखने से कुछ नयापन खो जाएगा। वो अनएक्सपेक्टेड चीजें, जो हमें नई सीख देती हैं, वो शायद गायब हो जाए।
मेंटल हेल्थ पर असर – क्या होगा जब हमारे सपने “कंट्रोल्ड” हो जाएंगे?
मेंटल हेल्थ पर इसका क्या असर होगा, ये एक दिलचस्प सवाल है। अगर आप स्ट्रेस्ड हैं और रिलैक्सिंग सपनों का ऑप्शन चुन सकते हैं, तो शायद सुबह उठने पर तरोताजा महसूस करेंगे। आपकी मेंटल हेल्थ बेहतर हो सकती है। कुछ लोग हर रोज़ बुरे सपने देखते हैं, तो उनके लिए ये एक राहत की बात होगी।
पर एक और एंगल है—कभी-कभी हमारे बुरे सपने भी हमें कुछ सिखाने का काम करते हैं। जैसे डर से भागने की बजाय उसका सामना करना। अगर सब कुछ अपने काबू में हो जाए, तो शायद हमारे मस्तिष्क को वो ‘प्रोसेसिंग’ का मौका न मिले, जो नेचुरल सपनों में होता है।
क्या हम बोर हो जाएंगे?
अब ज़रा इस पर भी सोचें: अगर हर रोज़ आप अपने मन के सपने चुनने लगें, तो क्या बोरियत नहीं होगी? क्योंकि, सच कहें तो इंसान को हमेशा कुछ नया चाहिए। एक जैसी चीजें बार-बार करना हमें बोर कर सकती हैं। सोचिए, हर दिन अपने सपनों की कहानी खुद लिखनी पड़े—हो सकता है, एक हफ्ते बाद ही आपको सपनों की कमी महसूस होने लगे!
सपनों का खूबसूरत हिस्सा ही यही है कि वो अनजान होते हैं, वो हमें कुछ सिखाते हैं, कुछ एहसास दिलाते हैं। क्या हम वो मैजिक खो देंगे?
क्या होगा अगर हर सपना हमारी रियलिटी पर हावी हो जाए?
आखिर में, अगर हम अपने सपने खुद चुनने लगें, तो हो सकता है हमें असल ज़िंदगी से भी ज़्यादा सपनों में जीने की आदत हो जाए। जैसे असल जिंदगी में कुछ हो न हो, पर सपनों में सब कुछ मुमकिन है। कहीं ऐसा न हो कि धीरे-धीरे हम सपनों की दुनिया में ही फंस जाएं और रियल लाइफ में कम दिलचस्पी लेने लगें।
तो क्या होगा अगर हमें अपने सपने चुनने का मौका मिले? शायद शुरुआत में ये आइडिया शानदार लगे, पर धीरे-धीरे हमें असल सपनों का असली मजा—वो अनदेखा और अनचाहा—ही मिस होने लगे।
आपका क्या ख्याल है?
Also Read : राहुल के सपने और ब्रह्मांड की असलियत
Discover more from WhatIf.in.net - Alternate Realities
Subscribe to get the latest posts sent to your email.